लौट आओ ..अब शाम हुई.
सिमट जाती है दिनभर की यादें !
चलो अब घर लौट चले ..
शाम जो हुई ,
हर जीव
हर पंछी
हर पथिक
तलाश है जिन्हें,
आशा है उन्हें,
सुख, शांति,अमन-चैन की प्यास है जिन्हें,
जीवन एक रैन-बसेरा,
घर एक आयोजन है,
बहुत कमाया,
उससे भी ज्यादा गँवाया है,
क्यों नहीं इस इंसान को गँवारा है,
कुछ तो कर लो संजीदा,
इस जीवन में जो लाये थे,
उसे भी गंवाया है,
पैसे बढ़े ईमान गिरे !
प्रकृति से ध्यान हटे !
पंछी भी संध्या होते ही कलरव गाते है,
अपनों को वापिस बुलाते हैं,
धार्मिक हुआ इंसान उन्हें ही मारकर खाते हैं
लौट आओ ..लौट आओ !
घर लौट आओ,
शाम हुई ..अब शाम हुई !
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डॉ_महेन्द्र