लौकतंत्र लंगड़ा हो गव
लौकतंत्र लंगड़ा हो गव
अंधे हो गये पहरेदार
रपट लिखाने के पैसा मांगे
चमचे हो गये पत्रकार।।
लोकतंत्र लंगड़ा हो गव……..
जजवा हुन खुदैई न्याय मांगे
इज्जत हो रही तार तार ।।
अपसरशाही येसी चढी है
जनता कर रही है हाय हाय।।
लोकतंत्र लंगड़ा हो गव….
सूदखोरों की तोंदे बड गई
किसान हो गये कर्जदार
लोकतंत्र लंगड़ा हो गव…..
जात धर्म पे सबरे लडरये
खून की बह रही लम्बी धार
चोर उच्चके मैदान में घूमे
इनकी होरही जय जयकार
लोकतंत्र लंगड़ा हो गव
बहरे हो गये पहरेदार।।
अखि….. अखिलेश मेहरा