लो फिर आई है दीवाली
लो फिर आई है दीवाली
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लो फिर आई है दीवाली,
सूखी फ़ीकी है दीवाली।
रंगों बिन है आलम सूना,
सूनी – सूनी है दीवाली।
अंधेरे में डूबा जीवन,
तुम में डूबी है दीवाली।
टूटे सपने सारे सब के,
टूटी – फूटी है दीवाली।
स्वप्न भी हैं बिखरे-बिखरे,
फैली बिखरी है दीवाली।
दीपक रहते जलते बुझते,
जलती बुझती है दीवाली।
मनसीरत को है उलझाया,
उलझी-उलझी है दीवाली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)