लो, देती हूँ मैं पायल का सारा धातु
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लो, देती हूँ मैं पायल का सारा धातु
पिघलाओ और गढ़ो प्रक्षेपास्त्र।
लो देती हूँ मैं सारा स्वर्ण
पिघलाओ और गढ़ो अपना कवच।
मैं ये सारे घने केश उतार दूँगी
बांधो और उड़ो,
तुम्हारे उड़ान को मैं धार दूँगी।
योद्धा,तुम्हारे युद्ध की परवरिश
मेरे सिंदूर की आकांक्षा है।
तुम सीमाओं और संसार
दोनों युद्ध में विजयी हो
यह संकल्प हमारा साझा है।
युद्ध जो लड़े गए उसके औचित्य पर
सवाल उठे,सुलगे।
उठेंगे और सुलगेंगे पुन:।
लोगों ने उन्हें
कमरे के कोने की अलगनी पर सहेज रखे हैं।
फिर रख देंगे।
इतिहास की तरह।
रोज नजरें पड़ जाती है उसपर।
सवाल उठने लगते हैं,मन में
युद्ध ही सत्य है क्या? जिंदगी के।
बुद्ध देश नहीं है।
देश होता तो वह बुद्ध नहीं होता।
बुद्ध पराजय नहीं है।
पराजय होता तो अहिंस्र नहीं होता।
बुद्ध सिर्फ संदेश नहीं है।
संदेश होता तो ‘बुद्ध की लालसा’ नहीं होती।
बुद्ध मानवीय कर्म है।
कर्म नहीं होता तो हर युद्ध के बाद
उसकी तलाश नहीं होती।
बुद्ध सर्वदा का सत्य नहीं है।
बुद्ध प्रतिक्रियावादी सत्य है।
नहीं तो युद्ध भू लुंठित होता।
‘युद्ध ही सत्य है’ मानकर यही,जीना पड़ेगा।
इसलिए युद्ध के बाद के बलात्कार के लिए
और उससे मैं नहीं हूँ भयभीत।
आत्मा के युद्ध अर्थात बुद्ध के युद्ध के लिए
देह के युद्ध हार भी गए तो क्या!
यह है तुम्हारा सार्वभौमिक जीत।
मैं युद्ध के लिए उकसाती नहीं
तुम्हें करती हूँ प्रेरित।
धर्म हो इस पृथ्वी पर स्थापित।
धर्म अच्छे क्रियाओं का है संकलन
और निष्ठापूर्वक संचालन।
करुणा धर्म है।
प्रार्थना स्वार्थ से प्रेरित अकर्म है।
तुम युद्ध के विरुद्ध युद्ध करने खड़े हो।
तुम बुद्ध को जगाने समर में अड़े हो। …
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