” लो आ गया फिर से बसंत “
•• लो आ गया फिर से बसंत
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नीरसता में रस घोल-घोल
कलियों की आंखें खोल-खोल
भरने उर में अनुराग कंत
•• लो आ गया फिर से बसंत
तरुओं में भर-भर कर उमंग
लेकर नव पल्लव संग-संग
भरने सृष्टि में विविध रंग
•• लो आ गया फिर से बसंत
कू कू करती कोयल के संग
पुलकित हो तरु के अंग-अंग
करने हेतु नव सृजन अनन्त
•• लो आ गया फिर से बसंत
पतझड़ घावों को भर-भर कर
आनंदित वसुधा को कर कर
“चुन्नू”करने अवसाद अंत
•• लो आ गया फिर से बसंत
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)