‘लोभ’और ‘लालच’
‘लोभ’और ‘लालच’
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लोभ-लालच है ,’भाई सौतेला’,
एक की ‘मम्मी’ है , ‘अहंकारी’;
और दूसरे की भी है, ‘दुराचारी’;
दोनों ही है,’ सौतन’ अत्याचारी;
इसके ‘पापा’ भी हैं , भ्रष्टाचारी;
दोनों बेईमान का ही, ‘पोता’ है,
लोभ-लालच, सदा ही रोता है।
‘ईर्ष्या’ बन गई लोभ की ‘बीवी’,
‘द्वेष’ ठहरी लालच की करीबी।
बच्चे इसके हो गए , ‘अपराधी’
देश की अब ये आधी आबादी।
शत्रु बना है इसका, ‘ईमानदार’
करता सदा ही , इसे खबरदार।
संस्कार बेचारा इसका,’पड़ोसी’
कभी-कभी बनता, ये भी दोषी;
‘सफेदपोश’ हैं,सबका ‘परपोषी’।
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स्वरचित सह मौलिक
…. ✍️पंकज “कर्ण”
………..कटिहार।।