लोग क़रीब बुलाते है क्यों
लोग क़रीब बुलाते है क्यों
क़रीब बुलाकर दूर चले जाते है क्यों
ख़्वाब दिखा कर झूठे
हक़ीक़त में तोड़ जाते है क्यों
जब मरहम लगाना नही आता
तो जख्म दे जाते है क्यों
एहसान जताना ही था तो
एहसान में अपने दबाते है क्यों
आसमाँ से फ़लक तोड़ने की बाते कर
वादों से मुकर जाते है क्यों
अपना बता कर नींद में
पराया बना जाते है क्यों
सफर का हमसफ़र बनकर
राह में तन्हा छोड़ जाते है क्यों
बरसात के मौसम में
तिश्रगी बढाते है क्यों
बुझी हुई आग की आंच में
घी डाल कर अब भड़काते है क्यों
अपना बनाकर अक्सर
गैर हमको बताते है क्यों
आब की जुस्तज़ू में अब
तिश्रगी बढाते है क्यों
भूपेन्द्र रावत
12।09।3027