लोग विचार रहे (घनाक्षरी)
लोग विचार रहे (घनाक्षरी)
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बिगड़ी मौसम की चाल है कुछ
कुछ इन्टरनेट बिगाड़ रहे
छोटे कुछ लोग रहे तो रहे
कुछ शीर्ष भी कारागार रहे
कुछ चोर बने निर्धनता से
कुछ धन के भार से हार रहे
ग्रहण लगा चंदा तक पर
क्यों धरती के लोग विचार रहे
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रचयिता: रवि प्रकारा, बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र.) मो. 9997615451