लोग मुझे पागल कहते हैं।
आप सभी के समक्ष एक कविता पेश है
लोग तुम्हारे हसीन चहरे को खुबसूरत खिलता हुआ कमल कहते हैं
मोहब्बत में जो मकबरा बना दे तो उसे फिर ताजमहल कहते हैं
ईश्क में बंया करे जज्बात को कोई तो यहाँ उसे दिल की पहल कहते हैं
खुदा की इनायत हो जाए तो छोटे से मकान को भी शीशमहल कहते हैं
जो आंखों से आंसू बनकर उतर जाये तो इसे नमकीन वाला तरल कहते हैं
पी कर भी ना मरे मीरा अमर रहे शायद उस चीज को गरल कहते हैं
किसी की याद में रातों में नींद ना आये तो मन की हलचल कहते हैं
माँ जो सुलाये अपनी गोद में उसे ममता और प्यार का आंचल कहते हैं
जो आकाश में उड़ता जाये आवारा बनके उसे ही बादल कहते हैं
ये दिल रुकता ही नहीं किसी एक ठौर पे इसलिए इसे चंचल कहते हैं
जब अल्फाजों में दर्द उतरता है तो जख्म में डुबा हुआ घायल कहते हैं
जब जताता हूँ दिल के अरमान जालिम लोग जुबां से नक्सल कहते हैं
वो मेरी लिखी हुई महकती पंक्तियों को शायर की गजल कहते हैं
मैं लिखता हूँ जब सब छोड़ के और जोड़ के तो लोग मुझे पागल कहते हैं
✍? स्वयं की कलम से
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.