लोग फिर छले गए (गीत)
लोग फिर छले गए (गीत)
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लोग फिर छले गए
(1)
सोचते रहे सभी कि इंकलाब आ गया
यह चुनाव सब पुराने खंडहर ढहा गया
परंतु मात खाई यह कि हाथ फिर मले गए
लोग फिर छले गए
(2)
स्वर बदल गए सभी के कुर्सियां जिन्हें मिलीं
प्रश्न सादगी के जब उठे जुबान सब सिलीं
चापलूस रह गए हैं ,मित्र सब चले गए
लोग फिर छले गए
(3)
उसूल अपने मानने से खुद ही कर दिया मना
छुरा था बाएं हाथ ही के अपने खून से सना
क्रांतिवीर तख्त के मिजाज में ढले गए
लोग फिर छले गए
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451