लोग दुनिया भर के
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक 😢😢 अरुण अतृप्त
अजीब सी
कशमकश
में रहतें हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
सोचते बाद में हैं
पहले कह देते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
गुजरती क्या
होगी किसी
के दिल पर
ये तो सोचते
ही नहीं
लोग दुनियां
भर के ।।
कुछ एक
बातों के अर्थ
अनर्थ कर
लेते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
ये नही कहता
के सब के सब
अजीब होते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
मगर फिर भी
कुछ हद तक
गजब होते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
बचा बचा कर
जिया करता हूँ
दामन अपना
फिर भी अचानक से
छू लेते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
मेरी आदत है
सड़क पर नियम से
चला करता हूँ
फिर भी कहीं कहीं
से आ के टकराकर
निकलते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।
मुझे लगता है
मालिक की दुनिया में
इसी तरह का
व्यवहार रहा करता है
कितनी भी कोशिश
करलो उनका यही
संवाद रहा करता है
आदि न अंत कुछ
भी तो सुनिश्चित नही है
इस जहांन में
इसी तरह से सभी
गुजर करते हैं
लोग दुनियां
भर के ।।