✍️लोग जमसे गये है।✍️
✍️लोग जमसे गये है।✍️
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दुनियां को जीतकर मैं घर में हार जाता हूँ।
उन्हें खुशिया देने,मैं हर दर्द के पार जाता हूँ।।
जुबाँ जुबाँ में सिर्फ कड़वाहट ही मिलती है।
सोचा थोड़े निम के पेड़ यहाँ बोकर जाता हूँ।।
यहाँ लफ्ज़ो के काँटे हर कोई चुभाता दिल में।
कुछ बडे है,वो बबूल के पेड़ तोड़कर जाता हूँ।।
नजाने कहाँ से बहता है ये पीड़ा का सैलाब।
इस शहर को प्रेम के नहर से जोड़कर जाता हूँ।।
यहाँ की हवाँ बड़ी सर्द है,लोग जमसे गये है।
चलो उनके लिये मैं ख़ुद होके अंगार,जाता हूँ।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
07/06/2022