लाख कहते रहो बुरा हूँ मैं
लाख कहते रहो बुरा हूँ मैं
जानता है खुदा कि क्या हूं मैं
पाक है प्यार इस कदर मेरा
जिस्म को छोड़कर मिला हूँ मैं
लोग जन्नत की सोच रखते हैं
माँ के बारे में सोचता हूं मैं
दोस्त सारे दिमागदार मिले
फिर भी दिल से उन्हें मिला हूँ मैं
आज फिर फोन आ गया उसका
फिर से सुन लूँ कि बेवफा हूँ मैं
जब कोई हल निकल नहीं सकता
सब तुम्हें क्यों बता रहा हूँ मैं?
कुछ तो है जो छुपा रहे हो तुम
दर्द आँखों से आँकता हूँ मैं
मैं जिसे याद तक नहीं आता
उसके हक़ में भी सोचता हूं मैं
दौरे मुश्किल में ही सही ‘अरशद’
उनको अब याद आ गया हूं मैं