Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jul 2021 · 1 min read

“ लोगों ने हमें फुद्दू बना दिया “ ( व्यंग )

एक कविता को शृंगारिक
परिधानों से सँवारा
कविता को प्रियतमा का रूप दिया
उसके सौदर्य को सजाया ,
उनके नख -शिख का
वर्णन किया !!
उनकी मांग को सिंदूर और
चुड़ामणि रत्न से सजाया ,
गले में सुंदर आभूषण पहनाया !
सम्पूर्ण कविता को आकार दिया
सुंदरता का अद्भुत रूप बनाया !
फिर कविता के नीचे एक
सुंदर तस्वीर हमने लगायी !
लोगों के लाइक और कॉमेंटों
की बरसात उमड़ आयी !!
किसी ने लिखा “ क्या लगती हो ?”
“ तुम मेरे सपनों की रानी हो “
“ लाजवाब “ “ सुंदर “
बड़ी क्यूट लगती हो !!
इसी तरह लाइक और कॉमेंटों
की बौछारें होने लगी ,
हमने कुछ और सोचा ,
सब उल्टा -पुल्टा हो गया !
लोग हमारी कविता को एक नजर
देखा भी नहीं और नीचे
सुंदर तस्वीर को लोग चूमते चले गए !!
=====================
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 242 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
लड़कियों को विजेता इसलिए घोषित कर देना क्योंकि वह बहुत खूबसू
लड़कियों को विजेता इसलिए घोषित कर देना क्योंकि वह बहुत खूबसू
Rj Anand Prajapati
कुछ यक्ष प्रश्न हैं मेरे..!!
कुछ यक्ष प्रश्न हैं मेरे..!!
पंकज परिंदा
अच्छाई बाहर नहीं अन्दर ढूंढो, सुन्दरता कपड़ों में नहीं व्यवह
अच्छाई बाहर नहीं अन्दर ढूंढो, सुन्दरता कपड़ों में नहीं व्यवह
Lokesh Sharma
गीत.......✍️
गीत.......✍️
SZUBAIR KHAN KHAN
गिरगिट को भी अब मात
गिरगिट को भी अब मात
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मत रो मां
मत रो मां
Shekhar Chandra Mitra
रात
रात
SHAMA PARVEEN
ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସ ସହ ବଞ୍ଚନ୍ତୁ
ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସ ସହ ବଞ୍ଚନ୍ତୁ
Otteri Selvakumar
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
नज़र चुरा कर
नज़र चुरा कर
Surinder blackpen
ये ज़िंदगी
ये ज़िंदगी
Shyam Sundar Subramanian
सीने पर थीं पुस्तकें, नैना रंग हजार।
सीने पर थीं पुस्तकें, नैना रंग हजार।
Suryakant Dwivedi
😊अनुभूति😊
😊अनुभूति😊
*प्रणय प्रभात*
उसके जैसा जमाने में कोई हो ही नहीं सकता।
उसके जैसा जमाने में कोई हो ही नहीं सकता।
pratibha Dwivedi urf muskan Sagar Madhya Pradesh
विजयदशमी
विजयदशमी
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
भीतर की प्रकृति जुड़ने लगी है ‘
भीतर की प्रकृति जुड़ने लगी है ‘
Kshma Urmila
सज्ज अगर न आज होगा....
सज्ज अगर न आज होगा....
डॉ.सीमा अग्रवाल
आखिर कब तक?
आखिर कब तक?
Pratibha Pandey
3118.*पूर्णिका*
3118.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"ऐसा है अपना रिश्ता "
Yogendra Chaturwedi
बेटियाँ
बेटियाँ
Raju Gajbhiye
पागल सा दिल मेरा ये कैसी जिद्द लिए बैठा है
पागल सा दिल मेरा ये कैसी जिद्द लिए बैठा है
Rituraj shivem verma
दरवाज़े
दरवाज़े
Bodhisatva kastooriya
दबी जुबान में क्यों बोलते हो?
दबी जुबान में क्यों बोलते हो?
Manoj Mahato
"धीरे-धीरे"
Dr. Kishan tandon kranti
कमियाॅं अपनों में नहीं
कमियाॅं अपनों में नहीं
Harminder Kaur
वारिस हुई
वारिस हुई
Dinesh Kumar Gangwar
जो इंसान मुसरीफ दिखे,बेपरवाह दिखे हर वक्त
जो इंसान मुसरीफ दिखे,बेपरवाह दिखे हर वक्त
पूर्वार्थ
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
फिर लौट आयीं हैं वो आंधियां, जिसने घर उजाड़ा था।
फिर लौट आयीं हैं वो आंधियां, जिसने घर उजाड़ा था।
Manisha Manjari
Loading...