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17 Jan 2018 · 2 min read

लोकतंत्र के लिए काला दिन

क्या हो गया है हमारे लोकतंत्र को आज जिधर नजर दौड़ाईयें बस बद्बूदार कीचड़ हीं कीचड़ है, इस लोकतंत्र की सबसे मजबूत धूरी, निश्पक्ष कही जाने वाली, इस लोकतंत्र को गलत मार्ग पर जाने से रोकने वाली वह धूरी जिसे हम सर्वोच्च न्यायालय के नाम से जानते हैं , अबतक जिसके लिए हमारे हृदय में श्रद्धा के भाव थे कि यहाँ सत्य बसता है, यहाँ न्याय की बात होती है यहाँ न्याय मिलता है , यहीं वह संस्था है हमारी न्यायपालिका जहाँ जिसके सानिध्य में अब भी लाख बुरे दौर देखने के बाद भी हमारा लोकतंत्र सुरक्षित है।

किन्तु आज जिस तरह से मीडिया के सामक्ष सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायधीशों ने अपना रोना रोया वह अंतरमन को वेधित कर गया। हम आम जन हैं हम नहीं जानते कौन सत्य बोल रहा है या कौन नाटक कर रहा है किन्तु इतना तो कह हीं सकते हैं कि ये जो कुछ भी हुआ हमारे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं । वाकई आज का यह दिन इस लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा काला दिन माना जायेगा, जो न्यायाधीश हमारे लिए परमेश्वर का स्थान रखते हैं उनका अपने लिए मिडिया के समक्ष न्याय मांगते हुए इस तरह से विधवा विलाप अंदर तक हमें उद्विग्न कर गया। जिनसे हम अपने लिए न्याय की आशा रख जिनके समक्ष सर नवाये खड़े होते हैं अगर उनका यह हाल है तो आम जन का क्या होगा सोच कर भी तन वदन में सिहरन उत्पन्न होने लगता है।

सोशल मीडिया पे चर्चाएं चल रहीं हैं कोई इन्हें सही ठहरा मुख्य न्यायाधीश को गलत बता रहा है तो कोई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति को सही बता इन चारों को कांग्रेस का दल्ला चमचा और नजाने क्या क्या कह रहा है, कोई इन्हें बामपंथी विचारधारा का प्रवर्तक बताकर सिरे से खारिज कर रहा है किन्तु इन सभी मामलो में अबतक सरकार इसे न्यायपालिका का अंदरूनी मसला बता कर मौन धारण किये हुए है।

हमारे नजर में वह कोई भी मामला जो अंदर से निकल कर सबके समक्ष आ जाये वह आपसी या अन्दरूनी नहीं रहता । यह तो राष्ट्र के सबसे बड़े न्यायपालिका सर्वोच्च न्यायालय की बात है जबकि अदना सा किसी छोटे से परिवार में मियां बीवी का झगड़ा भी जब सड़क पे आ जाता है तो वह भी आपसी या अंदरूनी नहीं रह जाता तो भला जिस समस्या से राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुंची हो , राष्ट्र की अक्षुण्ण न्याय व्यवस्था आहत हुई हो वह समस्या आपसी या अंदरूनी कैसे हो सकती है।

जरूरत है इस संपूर्ण समस्या पर चिंतन करने की निश्पक्ष जांच कर राष्ट्र के गरिमा को लहूलुहान करनेवाले व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा देने की ताकि भविष्य में फिर से ऐसी प्रक्रिया फिर से ना दोहराई जाय। फिर कभी संपूर्ण विश्व के समक्ष हमारे राष्ट्र को शर्मसार न होना पड़े। फिर कभी ऐसी घटना घटित ना हो। राष्ट्र की गरिमा उसके सम्मान से बड़ा कोई नहीं… कोई भी नहीं।
जय हिन्द, जय भारत।
वन्दे मातरम्।
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
Tag: लेख
424 Views
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