लोकतंत्र का मंदिर
लोकतंत्र का मंदिर इनको
फूटी आँख न भाये,
इस मंदिर की मर्यादा को
ये कब समझ हैं पाये,
लोकतंत्र इनकी फ़ितरत को
जँचता कभी नहीं है,
कभी सुशासन पलड़ा भारी
लगता भला नहीं है,
कभी गोलियाँ , कभी गालियाँ
सारे जतन ये करते,
जैसे भी बस इनका चलता
बैसे ही ये करते,
लोकतंत्र की छाती पर ये
दाग चुके हैं गोली,
कितने हमले झेल चुकी है
भारत माता भोली,
नए नवेले मंदिर पर भी
देखो ये चढ़ आये,
मंशा एक ही , कुछ भी करें ये
लोकतंत्र मर जाये,
लेकिन बहुत जमी हैं गहरे
लोकतंत्र की ईंटें,
भारत सशक्त सदैव रहेगा
ये कितनी छाती पीटें ।
(@)(c)दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “