लोकतंत्र का मंत्र
जन से ही जनतंत्र जन ही लोकतंत्र की धूरी
जनमत से ही होती हैं लोकतंत्र की शर्तें पूरी !
ये जनता की ताकत जन-जन की आवाज हैं
यहाँ जनता ही जनार्दन जिसके सिर ताज हैं !
गुलामी की बेड़ी तोड़ नया सूरज निकला है
अंकुर आजादी का,लहू सने माटी में पला है !
गणतंत्र की हर नीवं का पत्थर है यह कहता
बलिदान शहीदों का सदैव बुनियाद में रहता !
क्यों हो पूजते व्यक्ति-परिवार;हो पूजते कुनबा
क्यों पूजते जाति-मजहब,बाहुबली का रूतबा ?
जब चलोगें बहकावे में पीछे जैसे भ्रमित भेडे़ं
तब समझो इस देश में लोकतंत्र खाये थपेड़े !
हम जन गणतंत्र के संविधान हमारी शक्ति है
रक्षा-सुरक्षा,सेवा-सम्मान,कर्तव्य देशभक्ति है !
मैं जनता; जानता, जनाता जन की जिज्ञासा
हूं जीता, जीता जनतंत्र में; न संशय न झासा !
ये लोकनृत्य,लोकसाहित्य,लोककथा,लोकगीत
ये लोकमानस, लोकसंस्कृति और लोकसंगीत !
लोककल्याण,लोकहित,लोकमत ही लोकतंत्र है
यहाँ लोक ही सब कुछ और लोक ही तो मंत्र है !
अब जन-जन को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाना है
लोकतंत्र के पथ से भारत को आगे बढ़ाना है !
जय भारत ।।
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मौलिक एंव स्वरचित : रचना संख्या-१५
जीवनसवारो,मई २०२३.