लोकतंत्र का खेल
लोकतंत्र का खेल
चुनावी रण मे यही हाल अब नेता जी का हों रहा।
वोटर के वोट से हर नेता भारी व गुब्बारा हों रहा।।
क्यों अपने घर के सभी जरूरी कार्य को छोड़ कर?
जनता का सेवक बनने को देखो यु आतुर हों रहा।।
हर तरफ शोर मच रहा, लोकतंत्र का व्यापार हों रहा।
वोटरों मे आत्म विश्वास ना रहा, बस अंधभक्त हों रहा।
बोतल, बोटी व चंद रुपयों में, अपना मोल भाव कर रहे।
फिर क्यों हर तरफ नेता का, नाम ही बदनाम हों रहा ?
चादर तो कई दिया जल रहा, मंदिरों मस्जिदों में शोर हों रहा
जूता, लाठी व डंडा चल रहा, लगता है आज चुनाव हों रहा।
देश मे डर का माहौल बन गया चुनाव आयोग कहा खोगया ?
जनता का मसीहा कौन बन रहा लोकतंत्र का खेल हों रहा।
ऊच-नीच व जात पात मे बट रहा हमारे साथ खेल हों रहा।
लाल कोई हरे रंग मे रंग रहा मज़हबी नारों का शोर हों रहा।
क्यों, क्यों लाल, नीला, हरा व काले झंडो मे मानव बट गया ?
यहाँ लोकतंत्र का खेल हों रहा, लगता है आज चुनाव हों रहा।
लीलाधर चौबिसा (अनिल)
चित्तौड़गढ़ 9829246588