” लोककवि लोकगायक पंडित राजेराम भारद्वाज संगीताचार्य जीवन चरित्र “
पण्डित राजेराम भारद्वाज की जीवन गाथा को जो लोग जानते हैं, वे इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं कि साहित्य मार्ग पे चलने के लिए 15 वर्ष की आयु में घर छोड़ जाने का दर्द क्या होता है और किसी रचनाकार का जन्म उसके क्षेत्र के लिए हर्ष का विषय होता है क्यूकि कौन जानता है कि आज इस घर में जन्मा नवजात शिशु कल का होने वाला महान् साहित्यकार है।
किस्सा – सारंगापरी . 18
लख्मीचंद की जांटी देखण चाला मोटर लारी मै
मांगेराम गुरु का पांणछी देखा सांग दुह्फारी मै
फाग दुलेन्ड़ी के मेले पै आईए गाम लुहारी मै,
राजेराम दिखाऊंगा तनै कलयुग का अवतारी मै
उड़ै परमहंस जगन्नाथ महात्मा आवै रोज बसेरे पै।।
पण्डित राजेराम भारद्वाज का जन्म भी इसका अपवाद नहीं है। क्यूकि कोई नहीं जानता था कि जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे इस बालक राजेराम में यह प्रतिभा छिपी पड़ी है। उन्होंने अपना घर छोड़ने का दर्द भी एक रचना मे किस प्रकार किया है द्य
किस्सा – गंगामाई रागनी – 15
म्हारे घरक्या तै होई लड़ाई चाल पडय़ा था एक दिन मै,
मांगेराम पाणछी कै म्हां मिलग्या चौसठ के सन् मै,
मान लिया था गुरू अपणा, मनै ज्ञान लिया बालकपण मै,
बात पुरानी याद करूं तो उठै लौर मेरे तन मै,
राजेराम जमाना देख्या घर तै बाहर लिकड़के नै।।
संक्षिप्त जीवन परिचय
पं0 राजेराम जी का जन्म सन् 1948 ई0 को गांव लोहारी जाटू, जिला भिवानी (हरियाणा) हुआ । इनके पिता का नाम पं0 तेजराम शर्मा व माता का नाम ज्ञान देवी था जो 30 एकड़ जमीन के मालिक थे। ये चार भाई थे जिनमे बड़े का नाम औमप्रकाश, सत्यनारायण, राजेराम, कृष्ण जी | पण्डित राजेराम भारद्वाज जी गौरे रंग वाले और लम्बे कद वाले एक प्रतिभाशाली पुरुष हैं। इनकी वेशभूषा धोती.कुर्ता व साफा, तुर्हे वाला खंडका इनकी प्रतिभा में चार चांद लगा देता है और सादा जीवन व रहन-सहन इनका आभूषण है।
किस्सा – गंगामाई – 26
मानसिंह तै बुझ लिए मै इन्सान किसा सू
लख्मीचंद तै बुझ लिए मै चोर लुटेरा ना सू
मांगेराम गुरु कै धोरै रोज पांणछी जा सू
दुनिया त्यागी होया रुखाला मै हस्तिनापुर का सू
राजेराम राम की माला रटता शाम सवेरी ||
किस्सा – चमन ऋषि सुकन्या .15
लख्मीचंद स्याणे माणस गलती मै आणिये ना सै,
मांगेराम गुरू के चेले बिना गाणिये ना सै,
ब्राहम्ण जात वेद के ज्ञाता मांग खाणिये ना सै,
तू कहरी डाकू चोर, किसे की चीज ठाणिये ना सै,
राजेराम रात नै ठहरा ओं म्हारा घर डेरा हे।।
पं0 राजेराम की शिक्षा प्रारम्भिक स्तर 5 वीं तक ही हो पाई थी। पं0 राजेराम की शादी 21-22 वर्ष की उम्र में गांव खरक कलां.भिवानी में ही हुई। इनकी पत्नी का नाम भतेरी देवी है और जिसने तीन लड़को को जन्म दिया बड़े बेटे का नाम श्याम सुन्दर, विरेन्द्र व कमल है।
किस्सा – कृष्ण लीला – 22
सुपनै जैसी माया तेरी पागल दुनिया सारी सै,
निराकार साकार तू दिखै सब मै तू गिरधारी सै,
कृष्ण-2 रटै गोपनी राधे या कृष्णलीला न्यारी सै,
6 राग और तीस रागणी वेद दुनी सब गारी सै,
राजेराम नहीं पढ़रया सै किसी रागनी गा जाणै।।
साहित्यिक रूचि
पं0 राजेराम प्रारम्भ में खेती-बाड़ी का काम किया करते थे। गांव लोहारी जाटू में अच्छी जमीन-जायदाद थी| उनका लगभग पूरा जीवन क्रम उनके गाँव लोहारी जाटूए जिला भिवानी के निकट हरियाणा मे व्याप्त रहा।
किस्सा – पिंगला भरथरी .15
बखत आणा-जाणा निर्धन राजा राणी मै,
बखत पै बेरा पटै आदमी कितणे पाणी मै,
बड़े-बड़या की हवा उतरगी खैचां ताणी मै,
राजेराम प्रेम का वासी उम्र याणी मै,
लुहारी गाम जिले भिवानी मै, था कदे हिसार मै।।
परन्तु इनको बचपन से ही गाने बजाने का शोक था और उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार सुर्यकवि पण्डित लखमीचंद प्रणाली के कवि शिरोमणि पण्डित मांगेराम के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक ही था।
साध संगत – बाबा जगन्नाथ – 6
फेर लख्मीचंद की जांटी देखी आके दुनियादारी मै
फेर उड़ै तै गया पाणछी बैठके मोटर लारी मै
वा जगाह ध्यान मै आई कोन्या देख्या सांग दोह्फारी मै
राजेराम घूमके सारै फेर आया गाम लुहारी मै
मनै सारै टोह्या किते पाया मांगेराम जिसा गुरु नहीं ||
सन् 1964 में 15 वर्ष की आयु में बिना बताए घर से चले गए और उनके सांग में जा मिले क्योकि वे पं0 मांगेराम के सांग सुनने के बड़े दिवाने थे। पं0 राजेराम जी को उनका सांग सुनते हुए ऐसा रंग चढ़ा कि उनको अपना गुरू ही धारण कर लिया।
किस्सा – कृष्ण लीला – 13
म्हारे घरक्यां तै होई लड़ाई चाल्या उठ सबेरी मै,
सन् 64 मै मिल्या पाणची मांगेराम दुहफेरी मै,
न्यूं बोल्या तनै ज्ञान सिखाऊ रहै पार्टी मेरी मै,
तड़कै-परसूं सांग करण नै चाला खाण्डा सेहरी मै,
राजेराम सीख मामुली जिब तै गाणा लिया मनै।।
साध संगत – बाबा जगन्नाथ – 3
लख्मीचंद बसै थे जांटी ढाई कोस ननेरा सै
पुर कै धोरै गाम पाणछी म्हारे गुरु का डेरा सै
पुर कै धोरै हांसी रोड़ पै गाम लुहारी मेरा सै
राजेराम कहै कर्मगति का नही किसे नै बेरा सै
20 कै साल पाणछी के म्हा म्हारे गुरु नै ज्ञान दिया ||
पं0 राजेराम लगभग 5-6 महीने मांगेराम के संगीत के बेड़े में रहे। फिर प्रथम बार इन्होंने भजन पार्टी सन् 1978 ई0 से 1980 तक 3 वर्ष रखी और फिर वे सांग मंचन को छोड़ गए। फिर उन्होंने अपनी इस बेड़े का जिक्र इस तरह प्रस्तुत किया है ||
किस्सा – पिंगला भरथरी .14
स्याणे माणस के करया करै गलती आले काम,
मुर्ख माणस होया करै सै दुनिया मै बदनाम,
बुरे काम तै हो बदनामी जाणै देश-तमाम,
राजेराम ब्राहम्ण कुल मै खास लुहारी गाम,
विरूद्ध पार्टी साज ओपरा उडै़ गाया ना करूं।।
फिर सांग मंचन को छोड़ने के बाद वे दोबारा गृहस्थ जींवन मे व्यस्त हो गये और साथ साथ अपनी साहित्यिक प्रतिभा को भी आगे बढाते चले गये क्यूकि इनमे स्मरण शक्ति व यादास्त इतनी जबरदस्त है कि इनके स्वरचित साहित्य मे से किसी भी समय कहीं से भी कुछ भी और किसी तरह के प्रश्न कर सकते है और वे उनके उतर उसी समय बिना किसी रूकावट के बड़ी आसानी से देते है द्य इसी आत्मीय बल व ज्ञान और स्मरण शक्ति के कारण ही ये गृहस्थ जीवन मे अपार जिम्मेदारियों के साथ व्यस्त होकर भी एक साधारण मनुष्य की तरह अपने इस साहित्य को उच्चकोटि तक पहुंचाकर अपना साहित्यिक परिचय दिया|
साहित्य रचना की प्रेरणाः-
मेरे विचार से प्रेरणा और उत्साह मनुष्य के हाथ में वे हथियार हैं जिनके सहारे मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और सभी जानते है कि अधिकतर प्रेरणा रूपी ये हथियार बाहर से ही मिलते हैं |
किस्सा – पिंगला भरथरी .5
राजेराम उम्र का बाला, मिलग्या गुरू पाणछी आला,
ताला दिया ज्ञान का खोल किया मन का दूर अंधेरा सै,
ज्ञान की लेरया चाबी री।।
किस्सा – चमन ऋषि सुकन्या .8
चैबीसी के साल बणी रागणी तमाम,
गाम हमारा लुहारी सै जमीदारा काम,
पाणची सै पुर कै धोरै गुरू जी का धाम,
अवधपुरी का राजा सू शर्याति मेरा नाम,
कहै राजेराम माफ करदे सुकन्या दूंगा ब्याह।।
ठीक उसी प्रकार राजेराम जी भी भाग्यशाली थे क्योंकि उन्हें ये प्रेरणा रूपी हथियार अपने ही राज्य के उनके गुरु प्रसिद्ध सांगी कवि शिरोमणि पण् मांगेराम जीए गाँव.पांण्छी.जिला सोनीपत वाले से मिले, जो गंधर्व अवतार सुर्यकवि पण्डित लख्मीचंद गाँव जांटी जिला सोनीपत वाले के शिष्य थे, अब यहाँ इन प्रेरणा रूपी ये हथियारो की कुछ झलक प्रस्तुत कर रहा हूँ जो निम्नलिखित है |
किस्सा – कृष्ण जन्म – अनुक्रमांक 21
वसु . मानसिंह बासौदी आला, सिखावण नै छंद आग्या,
गंधर्वो मै रहणे वाला, पं0 लखमीचंद आग्या,
मांगेराम गुरू काटण नै, विपता के फंद आग्या
देवकी . भिवानी जिला तहसील बुवाणी खास लुहारी गाम पिया,
भारद्वाज ब्राहमण कुल मै, जन्में राजेराम पिया,
भगतो का रखवाला आग्या, बणकै सुन्दर श्याम पिया
वसु . मैं न्यूं सोचू सूं नार, के करणा चाहिए देवकी।।
ब्रह्मज्ञान – 1
मानसिंह नै सुमरी देबी धरणे तै सिखाए छंद,
लखमीचंद नै सुमरी देबी सांगी होये बेड़े बंद,
मांगेराम नै सुमरी देबी काट दिए दुख के फंद,
शक्ति परमजोत करूणा के धाम की,
बेद नै बड़ाई गाई देबी तेरे नाम की,
राखदे सभा मै लाज सेवक राजेराम की,
शुद्ध बोलिए वाणी री-सबनै मानी शेरावाली री।।
किस्सा – चमन ऋषि सुकन्या .14
मानसिंह तै बुझ लिये औरत सूं हरियाणे आली,
लख्मीचंद तै बुझ लिये गाणे और बजाणे आली,
मांगेराम तै बुझ लिये गंगा जी में नहाणे आली,
भिवानी जिला तसील बुवाणी लुहारी सै गाम मेरा,
कवियां मै संगीताचार्य यो साथी राजेराम मेरा,
मै राजा की राजकुमारी सुकन्या सै नाम मेरा,
कन्या शुद्ध शरीर सूं च्यवन ऋषि की गैल ब्याही भृंगु खानदान मै।।
किस्सा – चमन ऋषि सुकन्या .24
मांगेराम पाणची मै रहै था गाम सुसाणा,
कहै राजेराम गुरू हामनै बीस के साल मै मान्या,
सराहना सुणकै नै छंद की खटक लागी बेड़े बंद की,
लखमीचंद की प्रणाली का इम्तिहान हो गया।।
इसी कारण साहित्य लेखन की कला इनकी प्रणाली में ही विद्यमान थी, बस जिसे हवा के एक झोंके की जरूरत थी और वो झोंका दिया इनके गुरु प्रसिद्ध सांगी कवि शिरोमणि पण् मांगेराम जी ने सन 1964 मे।
किस्सा – चमन ऋषि सुकन्या .11
राजेराम कद गाणा सिख्या न्यूं बुझै दुनिया सारी,
बीस कै साल पाणछी मै देई गुरू नै ज्ञान पिटारी,
हांसी रोड़ पै गाम लुहारी भिवानी शहर जिला।।
और कहते है कि प्रत्येक मनुष्य में कोई न कोई रुचि अवश्य होती है जो कि उसे अपना समय व्यतीत करने में सहायता करती है। इसलिए साहित्य रचना और सांग मंचन उनकी मुख्य रुचि है।
किस्सा – कँवर निहालदे – 29
सोनीपत की तरफ ननेरे तै एक रेल-सवारी जा सेै,
जांटी -पाणची म्हारे गुरू की मोटर-लारी जा सै,
दिल्ली-रोहतक भिवानी तै हांसी रोड़ लुहारी जा सै,
पटवार मोहल्ला तीन गाल अड्डे तै न्यारी जा सै,
राजेराम ब्राहम्ण कुल मै बुझ लिए घर-डेरा।।
पण्डित राजेराम जी ने बहुत कम पढ़े.लिखे होते हुए भी अपने साहित्यिक जीवन में सांस्कृतिक, धार्मिक, गुरु भक्ति, घर.गृहस्थ उपदेशक भजन, ब्रह्मज्ञान, साध-संगत, श्रंगार व रस प्रधान, अलंकृत, छन्दयुक्त व सौन्दर्य से ओतप्रोत तथा 36 रागों सहित कुछ संगीतमय रचनाये भी की। उनका कहना है कि जीवन स्वयं एक कहानी है और हर घटना व बात में एक कहानी छिपी रहती है। फिर बस आवश्यकता है तो अपनी बुद्धि से उसे खोजने व शब्दों में बांधने की। अतः उनका मानना है कि साहित्य लेखन कोई आसान कार्य नहीं है। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में भिन्न भिन्न प्रकार की अनेको रचनाये लिखी जो कि गत् वर्ष 2017 में ही प्रकाशित हो रही है।
साध संगत – मिरगिरी महाराज सिकंद्र्पुरिया .1
मानसिंह कै हर्दय बस्या, सच्चा भगवान बणकै
लखमिचंद कै हर्दय बस्या सच्चा ब्रह्मज्ञान बणकै,
मांगेराम कै हर्दय बस्या साधु पहुँचवान बणकै,
लुहारी मै रहया बाबा दर्शन देंगे जगन्नाथ,
मिरगिरी नाम पडय़ा गौड़ सै ब्राहम्ण जात,
ब्रह्मरूप अग्नि मुख कंठ पै सरस्वती मात,
राजेराम सिकंदरपुर मै जा कै डेरा लाया।।
उन्होंने अपनी स्मरण शक्ति व आत्मज्ञान के बल पर इस साहित्य संग्रह में संकलित 20 सांगो की ब्रह्मज्ञान, गंधर्व नीति, ब्राह्मण नीति, साहित्यिक नीति, राजनीति, कूटनीति सहित लगभग 700 से ऊपर रचनाये की जो अपने आप में एक मिशाल है और यह साहित्य संग्रह उन्हें हरियाणवी साहित्य जगत के कवियों मे सम्मान दिलाने के लिए काफी है। इस प्रकार उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में 20 सांगो द्वारा 700 से अधिक रचनाये लिखकर हरियाणवी साहित्य जगत में वे अपनी एक पहचान बनाने की क्षमता रखते है जो इस प्रकार है |
अनु. संकलित सांग
1 सत्यवान-सावित्री
2 नल-दमयन्ती
3 राजा दुष्यंत-शकुन्तला
4 नारद-विषयमोहिनी
5 चमन ऋषि-सुकन्या
6 गंगामाई
7 कृष्ण जन्म
8 कृष्ण लीला
9 रुक्मणि मंगला
10 महात्मा बुद्ध
11 पिंगला-भरथरी
12 गोपीचन्द-भरथरी
13 सरवर-नीर
14 चापसिंह-सोमवती
15 कँवर निहालदे-नर सुल्तान
16 सारंगापरी
संतवाणी…..
17 बाबा जगन्नाथ. लोहारी जाटू
18 बाबा छोटूनाथ. लोहारी जाटू
19 मीरगिरी महाराज.सिकंदरपुरिया
20 फुटकड़ रागनिया
21 ब्रह्मज्ञान रचनाये