Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Nov 2016 · 2 min read

लोककवि रामचरन गुप्त के लोकगीतों में आनुप्रासिक सौंदर्य +ज्ञानेन्द्र साज़

‘जर्जरकती’ मासिक के जनवरी-1997 अंक में प्रकाशित लोककवि स्व. रामचरन गुप्त की रचनाएं युगबोध की जीवन्त रचनाएं हैं। हर लोककवि की कविता में आमजन लोकभाषा में बोलता है। ये कविताएं तथाकथित बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों की रचनाओं से सदैव भिन्न रही हैं, लेकिन ऐसी रचनाओं से कहीं बेहतर हैं।
लोककवि लोकभाषा में प्रचलित गायन शैलियों का बेताज बादशाह होता है। रसिया, मल्हार, दोहा, होली, स्वांग, वीर और फिल्मी घुनों में आमजन की बात लोककवि ही कह सकता है। रामचरनजी भी इससे अछूते नहीं रहे।
श्री गुप्त की रचनाओं के कुछ दृष्टव्य पहलू इस प्रकार हैं- एक निर्धन अपने बच्चे को पढ़ा न सकने की पीड़ा को यूं व्यक्त करता है-
ऐरे! एक चवन्नी हू जब नायें अपने पास, पढ़ाऊँ कैसे छोरा कूँ।
लोक कवि का यह आव्हान देखिए-
जननी! जनियो तौ जनियो एैसौ पूत, ऐ दानी हो या सूरमा।
मल्हार की गायकी के माध्यम से पूर्व प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु को देश की पीड़ा के रूप में कवि स्वीकारता है-
‘‘सावन सूनौ नेहरू बिन है गयौ जी।’’
देश-प्रेम, गुप्तजी का प्रिय विषय है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की नीचता की सही की सही पकड़ उनकी कविता में है-
चाउ-एन-लाई बड़ौ कमीनौ भैया कैसी सपरी।
अथवा
सीमा से तू बाहर हैजा ओ चीनी मक्कार
नहीं तेरी भारत डारैगो मींग निकार।
या
ओ भुट्टो बदकार रे, गलै न तेरी दार रे।
आनुप्रासिक सौंदर्य भी रचनाओं में भरा पड़ा है जो अनेक प्रकार से परिलक्षित होता है-
भूषण भरि भण्डार भक्तभयभंजन भरने भात चले।
अथवा
दारुण दुःख दुःसहिता दुर्दिन दलन दयालु द्रवित भए।
किसी भी बोली के आम प्रचलित शब्दों का प्रयोग करके लोककवि उन शब्दों को प्रसिद्धि दिलाने में बड़े सहायक का काम करता है यथा रामचरनजी द्वारा प्रयोग किए गए कुछ शब्द-‘मींग, दुल्लर, कण्डी, पनियाढार, गर्रावै, पपइया तथा पटका-पटकी’ आदि।
आज की यह मांग है कि ब्रजक्षेत्र से लुप्त होती इन संगीतमय विधाओं को जागरुक रखने के लिए लोककवि रामचरन गुप्त के काव्य पर विशेष चर्चाएं आयोजित करायी जाएं ताकि मूल्यांकन के साथ-साथ विधाएं भी बनी रह सकें।

Language: Hindi
Tag: लेख
380 Views

You may also like these posts

यह वो दुनिया है साहब!
यह वो दुनिया है साहब!
ओनिका सेतिया 'अनु '
2728.*पूर्णिका*
2728.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
माँ की पीड़ा
माँ की पीड़ा
Sagar Yadav Zakhmi
"इतिहास गवाह है"
Dr. Kishan tandon kranti
अभिमान  करे काया का , काया काँच समान।
अभिमान करे काया का , काया काँच समान।
Anil chobisa
मैं अकेली हूँ...
मैं अकेली हूँ...
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
*ऐसी हो दिवाली*
*ऐसी हो दिवाली*
Dushyant Kumar
रक्षा बंधन
रक्षा बंधन
Raju Gajbhiye
झूठ की लहरों में हूं उलझा, मैं अकेला मझधार में।
झूठ की लहरों में हूं उलझा, मैं अकेला मझधार में।
श्याम सांवरा
*भारत*
*भारत*
सुनीलानंद महंत
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
Student love
Student love
Ankita Patel
सिर्फ उम्र गुजर जाने को
सिर्फ उम्र गुजर जाने को
Ragini Kumari
कोशिश करना छोड़ो मत,
कोशिश करना छोड़ो मत,
Ranjeet kumar patre
यादों की सफ़र
यादों की सफ़र"
Dipak Kumar "Girja"
ज़माने की नजर में बहुत
ज़माने की नजर में बहुत
शिव प्रताप लोधी
प्रेयसी
प्रेयसी
Ashwini sharma
जल की व्यथा
जल की व्यथा
Vivek Pandey
“रफ़्तार पकड़ती ज़िंदगी”
“रफ़्तार पकड़ती ज़िंदगी”
ओसमणी साहू 'ओश'
मैं नहीं तो कोई और सही
मैं नहीं तो कोई और सही
Shekhar Chandra Mitra
कांटे बनकर जो
कांटे बनकर जो
Mahesh Tiwari 'Ayan'
"जमीं छोड़ आसमां चला गया ll
पूर्वार्थ
सारे गिले-शिकवे भुलाकर...
सारे गिले-शिकवे भुलाकर...
Ajit Kumar "Karn"
नहीं-नहीं प्रिये
नहीं-नहीं प्रिये
Pratibha Pandey
वेलेंटाइन डे स्पेशल
वेलेंटाइन डे स्पेशल
Akash RC Sharma
- अपनो पर जब स्वार्थ हावी हो जाए -
- अपनो पर जब स्वार्थ हावी हो जाए -
bharat gehlot
दहेज दानव
दहेज दानव
अवध किशोर 'अवधू'
पहली मुलाकात
पहली मुलाकात
Sudhir srivastava
ख़ुमार है
ख़ुमार है
Dr fauzia Naseem shad
मैथिली
मैथिली
श्रीहर्ष आचार्य
Loading...