लॉकडाउन (लघु कथा)
लॉकडाउन (लघु कथा)
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लॉकडाउन का छठा दिन था ।काम करने वाली बाई को तो पहले दिन से ही पत्नी ने सवैतनिक अवकाश इक्कीस दिन का दिया हुआ था । घर के सारे काम अब पत्नी के जिम्मे आ गए थे। पाँच दिन तो कट गए लेकिन छठे दिन बरतन माँजती हुई पत्नी ने आशा भरी निगाहों से देखा और प्रश्न किया” आप भी कुछ हाथ बँटाएँगे ? ”
मैं सकपका गया । कभी बर्तन नहीं माँजे थे । लेकिन आपदा काल था । झट से दो-तीन कप उठाने के लिए आगे बढ़ा । पत्नी ने टोक दिया “रहने दीजिए ! अगर कुछ करना ही है , तो यह कढ़ाई और कुकर माँज दीजिए।”
मरता क्या न करता ! मैंने दोनों बर्तन अपने हाथ में लिए और काम में जुट गया। उफ ! कढ़ाई पर् कितना सब्जी चिपटी पड़ी है ….और कुकर… उसमें तो दाल सूख – सूख कर काँटा हो गई है ।
तभी याद आया । कामवाली बाई अक्सर निवेदन करती रहती थी ” बीबी जी ! बर्तनों में पानी डाल दिया करो । बहुत मुश्किल आती है वरना ..।”
मैं सोचने लगा । जब खुद काम करना पड़ता है , तभी आटे – दाल का भाव याद आता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 5451