लेख–5
(1)
बहुत चीखती चिल्लाती है,
बोलती है वो ।
अरे साहब,
वो तो चुप ही रहती है
पर उसकी ये कलम
ही ये सब बवाल करती है ।
(2)
इश्क का दौर था ।
सब मशरूफ थे,
अपनी इश्क की गलियों में ।।
हम यही खड़े देखते रहे ।
जहां अक्सर लौट आते है,ल
प्रेमी, अपनी ज़िंदगी को
फिक्र के धुएं में उड़ाने के लिए ।।
(3)
सुना है…!
मुस्कुराहटें सब बयां कर देती है ।
पर तुम तो खुली किताब हो ।
तुम कोई राज कैसे छुपा सकती हो ।
(4)
चेहरा साफ है…।
कल रात ही फिक्र की सारी सलवटे
हमेशा के लिए मिटा दी ।
इसीलिए आज से बेफिक्र हूं ।
(5)
एक राज की बात, कहो तो बताऊं।
चुप रहो तो सुनाऊं ।।
घबराओ गी नहीं , सहमोगी नहीं ।
वादा करो तो सुनाऊं ।।
थोड़ी उलझी हुई सी अजीब बात है वो ।
अगर समझ सको तो सुनाऊं ।।
एक राज की बात, कहो तो बताऊं ।
कोई सवाल ना करो तो सुनाऊं ।।