लेखन
सागर नदियां झील तालाब, कब कहते हैं मत लो आब।
कल दो लोटे बहस कर रहे, कर लो दस बूंदों का हिसाब।।
बाल्मीकि, तुलसी, सूर और लिखे ग्रंथ बहु वेद व्यास।
लेखन एक साधना थी, जिसमें था अनुभव इतिहास।।
शब्द प्रपंचा करनेवाले कवि, पैसों से रचते इतिहास।
मंचों पर अब कूद कूद कर, करते है साहित्य का नाश।।
कोई “व्यथित” है कोई “पथिक” है कोई “राही” हमराही।
इंद्रसभा में “विश्वास” है इनका, ये सब कुपथ के है राही।।
ये सब मंचीय दरबारी कवि है, पर नहीं चंद वरदाई जैसा।
नहीं साधना न संयम इनमें, इनका चरित्र हरजाई जैसा।।