लेखन
मेरी कलम बिना रुके चलती है
कागज का सीना चीर के चलती है
गीत हो या कविता, मुक्तक या फिर रुबाई
आगाज से अंजाम तक बिना थमे चलती है
अब तो उंगलियों ने भी कमाल कर दिया
कलम की तरह ही मोबाइल पे चलती हैं
इसे भी अभी शुरू किया अभी ख़त्म
कहीं चले ना चले यहाँ तो चलती है
वीर कुमार जैन
06 जुलाई2021