लेखनी
सच की लेखनी जब चलती है
ना जाने कितनों की
भवें चढ़ती उतरती हैं
सच सामने आ रहा है
ये देख कर
जान सांसत में पड़ती है ,
उन्होंने कभी सोचा न था
उनकी कपटी सोच
उनके कहे झूठ
उनकी तिलस्मी चाल
जो दिखाई नही देती
कैसे शब्दों में ढल सकती है ?
बड़े गजब की होती है
इसकी अपनी ताकत
जब ये सच लिखती है
अच्छे – अच्छे सूरमाओं को
पल में धाराशाई करती है ,
लेखनी को कमजोर मत समझना
अगर ये लिखती है सच
तो नही किसी से है डरती
क्योंकि सच वाकई बहादुर होता है
सीमा पर सैनिक की तरह
डट कर खड़ा दिखाई देता है ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रकाशित
( ममता सिंह देवा , 03/09/2020 )