“लेखनी की चमक”
“लेखनी की चमक”
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कहीं से कुछ याद मुझे आ जाए
जो मेरी लेखनी में सजती जाए
भले किसी से ऑंखें चार हो जाए
जो मेरे दिल में ही छपती जाए !
जो भी होना है वो हो जाए
पर लेखनी मेरी चलती ही जाए
तब तक मेरा मन यूॅं ही भरमाए
जब से लेखनी मेरी चल ना जाए !
जिज्ञासा बाद मन विकल हो जाए
जब कुछ भी समझ में ना आए
तब मन ये सोच-सोच के घबराए
और दिल कभी भी संभल ना पाए !
तब जाके कुछ सुकूं मुझे मिल पाए
जब कहीं से कुछ भी नज़र आ जाए
तब तक मन मेरा डूबता ही रह जाए
जब तक कुछ सार ना निकल आए !
राह में उलझनें भी कम ना आए
जो मेरी राह में रुकावटें ले आए
इक पल रफ़्तार मेरी मंद कर जाए
पर लेखनी की गति रुक ना पाए !
मन मेरा पूरे जहाॅं में विचरण कर जाए
कहीं से भी ढूॅंढ़ के कुछ वज़ह ले आए
जो वज़ह लेखनी का आधार बन जाए
और विषय भी कुछ ख़ास ही रह पाए !
माॅं वाग्देवी से करबद्ध विनती हम कर पाएं
कि सदैव वे साधकों का भला करते जाएं
विद्या व सद्बुद्धि का वरदान उन्हें दे जाएं
ताकि वे ‘लेखनी की चमक’ बरक़रार रख पाएं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 11-08-2021.
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