Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Feb 2021 · 2 min read

लेखक की सफलता

मैं जालौर जाने के लिए अंसारी बस में नवापुरा से चढ़ गया। फिर *राउता * से दो यात्री चढ़े और मेरे सामने वाली सीट पर विराजमान हो गए। एक के हावभाव-बोलचाल के ढंग से स्कूल के सहपाठी अशोक की याद आयी। मुझसे रहा न गया। आखिरकार पूछ बैठा, “कही आप अशोक तो नहीं?” उन्होंने मुझे गौर से देखा। पहचानने की कोशिश की। याद आते ही उछल पड़े। कहा, “अरे” “शंकर” तुम? मेने हामी भरी तो उन्होंने गर्मजोशी से मुझे गले लगाया। हम दोनों पुरानी स्मृतियों में गुम खोकर गपशप मारने तल्लीन हो गए। पारिवारिक बातों का आदान-प्रदान होता रहा। बातों का सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ता कि अशोक को कुछ याद आ गया। मुझसे कहा, “मुझे अच्छी तरह से याद है कि स्कूल की पढ़ाई के दौरान तुम्हें तेज बुखार आया था विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को अपनी रचना भेजते थे जोकि सखेद लौट आती थी” यह कहकर अशोक जोरों से हंस पड़े। उनके अर्धपूर्ण मजाक पर पास में बैठे यात्री मुस्कराने लगे। मैंने उनकी बातों का रती भर भी बुरा नहीं माना। मैं तो इस बात से गदगद हो रहा था कि कोई तो सहपाठी मिला, जिसे मेरे शौक उनको अभी भी याद है। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए अशोक ने पूछा, “आज भी लेखन जारी है या हालातों से हारकर छोड़ दिया?” मैंने अपना पक्ष रखतें हुए कहा, “स्कूल की पढ़ाई पूरी करके अपनी पुश्तैनी कारोबार में रम गया। उसके बाद कॉलेज फिर कम्पीटीशन तैयारी। इस लिए अपनी जिंदगी को सवारने के लिए थोड़ा बहुत लेखन छूट गया था परन्तु अब वापस चालू कर दिया है” कुछ ही दिनों पहले मेरे द्वारा एक छोटी सी रचना लिखकर पत्रकार को भेजी। इसे मेरा सौभाग्य समझो, दुर्भाग्य वो रचना अखबार में छप गई। उनके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बस तभी से लेखनी की पुनरावृत्ति हो गई। “मैंने उत्साहित होकर,तत्परता दिखाते हुए, ब्रीफ़केस में से प्रकाशित अपनी रचनाओं की फोटो कॉपी वाली फाइल अशोक को थमाई,पढ़ने के लिए। अशोक को तल्लीनता पूर्वक अपनी रचनाएँ पढ़ते हुए देख, मैं सोंचने लगा, वो खुश होकर मेरी पीठ थपथपाई। प्रंशसा के पुल बांधते हुए मुझे कहा, “शाबाश” !! आखिर लेखक बनने में कामयाब हो ही गए। “आशा के विपरीत थोड़ी रचनाएँ पढ़ने के बाद, फाइल लौटते हुए शंका जताते हुए उन्होंने मुझसे पूछा- “”ये सारी रचनाएँ तुमने खुद लिखी है या किन्ही पत्र-पत्रिकाओं में से…………………..।””
में तुरंत बोल उठा नहीं-नही अशोक मेने खुद ने लिखी। अशोक की अधूरी बात का अर्थ समझने में देरी नहीं हुई मुझे। अब मैं उन्हें कैसे विश्वास दिलाता की असफलता का स्वाद चखे बिना सफलता का मीठा फल पाना मुश्किल हैं। मैं मन ही मन में आनंदित था कि मेरी रचनाओं में दम हैं। तभी तो अशोक ने अपनी जिज्ञासा शांत करने लिए ऐसा प्रश्न पूछा।

✍️शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालौर-343032
मोबाइल नम्बर8239360667

Language: Hindi
323 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#कमसिन उम्र
#कमसिन उम्र
Radheshyam Khatik
पढ़ो लिखो आगे बढ़ो...
पढ़ो लिखो आगे बढ़ो...
डॉ.सीमा अग्रवाल
*खेल खिलौने*
*खेल खिलौने*
Dushyant Kumar
*मन  में  पर्वत  सी पीर है*
*मन में पर्वत सी पीर है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
वफा माँगी थी
वफा माँगी थी
Swami Ganganiya
सिय का जन्म उदार / माता सीता को समर्पित नवगीत
सिय का जन्म उदार / माता सीता को समर्पित नवगीत
ईश्वर दयाल गोस्वामी
"सब्र"
Dr. Kishan tandon kranti
🌻 गुरु चरणों की धूल🌻
🌻 गुरु चरणों की धूल🌻
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
यहा हर इंसान दो चहरे लिए होता है,
यहा हर इंसान दो चहरे लिए होता है,
Happy sunshine Soni
दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
காதலும்
காதலும்
Otteri Selvakumar
#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
*प्रणय प्रभात*
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
2973.*पूर्णिका*
2973.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
खत पढ़कर तू अपने वतन का
खत पढ़कर तू अपने वतन का
gurudeenverma198
किसी तरह मां ने उसको नज़र से बचा लिया।
किसी तरह मां ने उसको नज़र से बचा लिया।
Phool gufran
मैं नारी हूं
मैं नारी हूं
Mukesh Kumar Sonkar
वक़्त गुज़रे तो
वक़्त गुज़रे तो
Dr fauzia Naseem shad
Don’t wait for that “special day”, every single day is speci
Don’t wait for that “special day”, every single day is speci
पूर्वार्थ
अपना घर
अपना घर
ओंकार मिश्र
बड़ी अजब है जिंदगी,
बड़ी अजब है जिंदगी,
sushil sarna
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
हिन्दी का मैं इश्कजादा
हिन्दी का मैं इश्कजादा
प्रेमदास वसु सुरेखा
"पहले मुझे लगता था कि मैं बिका नही इसलिए सस्ता हूँ
गुमनाम 'बाबा'
सिपाही
सिपाही
Neeraj Agarwal
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
Ranjeet kumar patre
मन में नमन करूं..
मन में नमन करूं..
Harminder Kaur
तोड़ डालो ये परम्परा
तोड़ डालो ये परम्परा
VINOD CHAUHAN
दिल के दरवाज़े
दिल के दरवाज़े
Bodhisatva kastooriya
Loading...