लेखक की आत्महत्या
दिनांक 29/3/19
उसने नया नया लिखना शुरू किया था । बहुत उत्साहित थी वो ।
सम्पादक के रूप में पत्रिका के लिए रचनाएँ अधिक आने पर रचनाओं का चयन करते समय सामान्यतः पहली बार सरसरी निगाह से पहले रचना पढ़कर छाँटी जाती हैं, फिर कुछ व्यवहारिक और कुछ अव्यवहारिक आधार पर अंतिम चयन किया जाता है । हाँ याद आया उसका नाम रमिया था, थोड़ा अलग सा ।
संभवतः वह दूसरी जगह भी रचनाएँ भेज रही हो , लेकिन छप नहीं रही हो ।
अब उसकी शुरू की रचनाओं में जो उत्साह था अब निराशा में बदलता जा रहा था ।
एक रचना में उसने लिखा था :
” बहुत भाग्यशाली होते हैं वो, जो लेखन के क्षेत्र में जल्दी ही बुलंदियों को छूते है , बिना किसी सहारे के अब लेखन में खड़े रहना मुश्किल सा है , अतः विराम देना उचित होगा । ”
मुझे लगा इस तरह कितने ही लेखक नाम और सहारे के बिना आत्महत्या कर लेते है ।
आखिर मैंने रमिया की एक रचना आगामी अंक में प्रकाशित कर दी । मैंने अन्दाजा लगाया अब उसकी खुशी का ठिकाना नहीं होगा । शायद मैंने एक लेखक को लेखन के क्षेत्र में आत्महत्या करने से रोक लिया था ।
संभवतः मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल