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1 Oct 2018 · 1 min read

लेकिन सीमा होती हैं ……..

माना कि संस्कार तुम्हारा
विवेक कभी न खोना हैं
कोई कितना कड़वा बोले
काम मगर सह जाना हैं

लेकिन भैया कब तक ऐसे
आँख मूंदकर बैठोगे
अधिकार अपने हिस्से का
गैरों को फोकट बाँटोगे

बंदर सारे उछल उछल कर
तुमको आँख दिखाते हैं
हक छीन कर आज तुम्हारा
तुमको बोल सुनाते हैं

माना अपना दिल बड़ा हो
लेकिन सीमा होती हैं
किस काम की ये जिंदगी
सब कुछ सह कर रोती हैं
—————-//**–
शशिकांत शांडिले, नागपुर
भ्र.९९७५९९५४५०

Language: Hindi
407 Views

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