लूं राम या रहीम का नाम
लूं राम या रहीम का मैं नाम हूँ हैरां……
किसने मुझे बनाया है किसका मैं हूं निशां
अदा करुं नमाज़ या करूँ मैं प्रार्थना ……
किस नाम से पुकारूँ है बतादे तू कहाँ
लूँ राम …
जिसने हमें बनाया उसी पर सवाल है……
दिया जनम प्रभु ने या परवर दिगार है
कोई यहाँ है हिन्दू कोई क्यों है मुसलमान ……
मज़हब में क्यों बंटा है तेरे जग का हर इंसान
“मज़हब ने हमें बाँट कर तनहा बना दिया …
पैदा हुए थे इंसान पर शैतान बना दिया।
धर्म के जो नाम पर हैं कत्ल कर रहे…
उसी धर्म ने उन्हें हैवान बना दिया॥“
ईसा मसीह साईं गुरु नानक बुद्ध का ……
क्या जानूं कौन तेरा है और कौन है मेरा
अदा करूँ…
जो सर्व शक्तिमान उसे दोगे क्या भला ……
बन्दों का कर भला तो होगा तेरा भी भला
सेवा से बड़ा धर्म कोई संसार में नहीं ……
सद्भावना व शांति का विकल्प ही नहीं
“सारे जहान के मालिक को बचाने ये चले हैं…
भगवान और रहमान को बसाने ये चले हैं।
ये दिल भी तो घर है तेरे इष्टदेव का …
एक घर बनाने दूजा मिटाने ये चले हैं॥“
रक्षक का दूँ या भक्षक का तुझे नाम हूँ हैरान ……
मौजूद है हर घर में तेरे दर्द के निशान
अदा करूाँ…
इंसान की पहचान है बस प्यार मोहब्बत ……
इससे बड़ा न पूजा है न कोई इबादत
प्रेम खुदा प्रेम राम प्रेम ही ईसा ……
प्रेम से बड़ा न यहां कोई भी दूजा
“प्रेम न खेतो उपजै, प्रेम न हाट बिकाई,
राजा प्रजा जेहि रूचे, सिर दे सो ले जाई।“
मानवता की सेवा में तू खुदको लुटाए जा ……
खुश होंगे तुझपे राम नानक मोहम्मद ईसा
तू नाम जिस किसी का ले सब ही हैं यहाँ ……
अलग नहीं वो एक है जिसके हैं सब निशां
अदा करो …
है धरती हम सभी का कहीं कोई भी रहे……
पर जुल्म ना किसी का कहीं कोई भी सहे
हो घर का मेरे चाहे तेरे घर का वो रहे……
नफ़रत फैलाने वाला कहीं का भी ना रहे
“आओ … मानवता की नई मिसाल बनाते हैं…
धरती को प्रेम स्नेह के काबिल बनाते हैं।
काशी काबा जेरुसलम का हो जहाँ संगम …
सर्व धर्म सद्भाव हृदय विशाल बनाते हैं॥“
कुटुम्ब वसुधैव का पहचान हो संस्कार ……
मिटाकर दूरियों को दे मानवता का पैग़ाम
अदा करो नमाज या करो तुम प्रार्थना ……
हो भेद ना कोई भी केवल प्रेम हो यहाँ
हो भेद ना कोई भी केवल प्रेम हो यहाँ… 3
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महेश ओझा
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गोरखपुर उ. प्र.