“लालसा”
“लालसा”…..
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छोटा सा प्राणी हूं,
मेरी ऊंची अरमान नही।
अपना शिखर छू चुका हूं,
अब ऊंचा जाना आसान नहीं।
होना था जो हो गया,
अब मेरी और पहचान नहीं,
चढ़ जाऊं फिर मैं , ऊपर ;
मिले सबका अहसान कहीं।
किस्मत से ज्यादा,
और उम्मीद कम,
मिलता कहां किसी को।
बस हक से मांगा,
बिना हिचक से मांगा,
अपने प्रयास अथक से मांगा।
मिथक से कुछ होता नहीं,
कर्मवीर संघर्ष में रोता नही।
भलाई करने वाले का,
भाग्य कभी सोता नहीं,
गैरों का बुरा सोचने वाले का,
सदा बुरा होता यहीं।
स्वरचित सह मौलिक
पंकज कर्ण
कटिहार,