लुटी हुई तिजोरी पे ताला नहीं लगाते
इस दिल की सुखन अब सुनायेगा कोई,
नीड़ से पंक्षियों को अब उड़ायेगा कोई।
जान जाये न मेरी अहमियत ये दुनिया,
अपनी शुर्खियों को अब छुपायेगा कोई॥
देखकर कोई कर न दें घर पे शिकायत
छुपकर साथ अपना अब निभायेगा कोई॥
लुटी हुई तिजोरी पे ताला नहीं लगाते,
बचा ही क्या है जो अब चुरायेगा कोई॥
संदीप “सत्यार्थी”