लिबास दर लिबास बदलता इंसान
लिबास दर लिबास बदलता इंसान
ख़ुद को भी बस मोहरा बनाता इंसान
इतना ना समझ तो नहीं है तू
फिर क्यों गैरों की बातों में आता इंसान।
हरमिंदर कौर ,अमरोहा
लिबास दर लिबास बदलता इंसान
ख़ुद को भी बस मोहरा बनाता इंसान
इतना ना समझ तो नहीं है तू
फिर क्यों गैरों की बातों में आता इंसान।
हरमिंदर कौर ,अमरोहा