लिबास और आदमी
लिबास और आदमी
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं,हर शख्स़ को उसके रंग-रूप से जाँचा जाता है।
ज़िंदगी में जो असल पहचान है,वो कभी न दिखती, बस बाहरी सूरत से पहचाना जाता है।।
गहरी अंदर की सच्चाई को कोई न समझता,जितनी कीमती है आत्मा, उतनी ही सस्ती बन जाती है।
हर कोई अपने रूप का खेल खेलता है,और आदमी अपनी असलियत में खो जाता है।।
कभी जो था दिल का साफ़, अब वो भी धुंधला हो गया,समझाने वाला अब खुद खामोश हो गया।
तेरा तो बस एक ही सवाल था,”मुझे गिलास बड़े दे, शराब कम कर दे।”।
लिबास की चमक और शराब के प्यालों में,शराबी जिंदगी में रंगों का खेल चलता है।
अंदर की तन्हाई और दिल की ग़मगीनियाँ,रंगीन काँच में डूब कर कहीं खो जाती हैं।।
कभी जीने की वजहों को ढूंढते हैं हम,कभी मस्ती के नाम पे दर्द को छुपाते हैं।
लेकिन फिर भी यही हकीकत है,यहाँ लिबास की क़ीमत है, आदमी की नहीं।।