“ लिफाफे का दर्द ”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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नये -नये
डाक टिकट
अब पुराने हो गए
लिफाफे ,
अन्तर्देशीय-पत्र
अपने आँसू बहाने लगे
कोई भी
हमरा प्रयोग
आज करता नहीं है
डाकिया
साधारण डाक
हमें पहुँचाता नहीं है
बातें मधुर
हमारे बीच
खुलके अब होती नहीं है
कुछ भी
कर लें लेकिन
सही चित्रण होती नहीं है
पता ठिकाना
लोगों का
कंटस्थ हमें
याद रहता था
उनके सुख -दुख के
हाल का
सब ख्याल रखता था
अब तो उनके
शहर में
पहुँचकर
मोबाईल से पूछते हैं
बेटे ! कहाँ है
तुम्हारा ठिकाना
तुम्हारे बच्चे कहाँ रहते हैं ?
मोबाईल में
नंबर अनेकों हैं
पर कभी बातें
नहीं हो सकती है
कहने के लिए
हजार सिम हैं
पर सदियों तक
बंद रहा करती हैं
रफ्तार भारी
जिंदगी को
बेशक हमने अपनाया है
पर पुरानी
स्मृतियों को
अपने लिफाफों में छुपाया है !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत
09.04.2023