लिफाफा देखकर पढ़ते
लिफाफा देखकर पढ़ते।
छंद -विजात (१४ मात्रिक, मापनी युक्त)
मापनी- १२२२ १२२२
रस-व्यंग
विधा -मुक्तक
विजात छंद,(१४ मात्रिक) मापनी युक्त
१२२२ १२२२
लिफाफा देखकर पढ़ते।
नये उपमान हैं गढ़ते।।
नहीं कहते हकीकत को,
मगर आगे सदा बढ़ते।
हमेशा ऐंठ में रहते ।
हवाओं में सदा बहते।।
सजाकर मंडली अपनी
जमीं पर पांव न रखते।।
सदा चंचल चतुर दिखते।
जमीनी सच नहीं लिखते।।
हमेशा चुट्कुले पढकर,
स्वयं को वो सुकवि कहते।
हमेशा ऐंठ में रहते ।
हवाओं में सदा बहते।।
सजाकर मंडली अपनी
जमीं पर पांव न रखते।।