लिख लेते हैं थोड़ा थोड़ा
गीत
लिख लेते हैं थोड़ा थोड़ा
कह लेते हैं थोड़ा थोड़ा
मत मानो तुम हमको कुछ भी
जी लेते हैं थोड़ा थोड़ा।।
दीप शिखा सी जले जिंदगी
खोने कभी और पाने को
बाहर बाहर करे उजाला
अंधियारा सब पी जाने को
मत मानो तुम उसको कुछ भी
जल लेते हैं थोड़ा थोड़ा
बस्ती बस्ती है शब्दों की
पढ़ी इबारत, मंजिल देखी
कुछ अंगारी, कहीं उदासी
आते जाते नस्लें देखीं
मत मानो तुम उनका कहना
पढ़ लेते हैं थोड़ा थोड़ा ।।
अभी वक्त है, थोड़ा सुन लो
अभी वक्त है, थोड़ा बुन लो
पल दो पल की प्राण प्रतिष्ठा
चली चांदनी, चंदा रूठा
मत मानो तुम इसको गहना
सज लेते हैं थोड़ा-थोड़ा ।।
सूर्यकांत द्विवेदी