लिख रहे
समझ सको तो समझो कुछ सहल लिख रहे है
हम सियासी दाव – पेंच को अबल लिख रहे है
जिनके हाथ किताबत में बातिल अफसानों से रंगे
वो आज रास्त को अपना जाँ ओ शग़्ल लिख रहे है
हर इक गुनाह ए नाज़ को, लिखे गुनाह ए नाज हम
कलमकार जिसको रब्बुल अर्बाब अमल लिख रहे है
उसकी याद में रो भींग आया हूँ इतनी देर फ़िर भी
हकीम इश्क ए रोग के उपचार में हवल लिख रहे है
लिखना था हमें मुहब्बत रास्त अमन सुकूँ ए क्लब
कहाँ हम पंडित ख़तीब मजहबी जदल लिख रहे है
जीतना जल्दी हो दूर हो लो सब के सब मुझसे कुनु
हिज्र में तुराब कर हम वहशत ए ग़ज़ल लिख रहे है