लिख देता हूँ
मुस्कराहट को, ग़म को,
दिल के हर दर्द को,
लिख देता हूँI
हैं वजह के लिखता हूँ,
हर ठोकर से सीखता हूँ,
कभी आंसुओं को,
कभी मुस्कराहट को,
लिख देता हूँI
सफलताएं लिखता,
कभी हार लिखता,
कभी ठेस मन के,
कभी तृष्णा जीवन के,
लिख देता हूँI
बड़ा क्लेश है चहुँ ओर,
बड़ी है मारामारी,
दिल तो नादाँ है मेरा,
ना जाने दुनियादारी,
क्या छुपाऊं सब-सब,
साफ-साफ़ कुछ तब,
लिख देता हूँI
पैसों की महत्ता बड़ी,
भरे जेब पर साथ खड़ी,
पैसे से मिल जाते कुछ,
बड़े महफ़िल वाले,
दरिया से बहते लोग,
दरिया से दिल वाले,
होता अहसास जब-जब,
लिख देता हूँ I
अजब से कुछ लोग रहते हैं,
जो मिलने को संजोग कहते हैं,
जब बात आती है निभाने की,
उनकी आदत नज़र चुराने की,
जब दिल होता है मजबूर,
लिख देता हूँI
आया हूँ यहाँ सबको,
दिल की बात बताने,
पाठकों के दिल में,
थोड़ी जगह बनाने,
चलो यही शुरुआत,
“दीपक” जलाकर,
लिख देता हूँ I
“दीपक जी “सूरज”