लिख दूँ
क्या भारत देश का नाम घमासान लिख दूँ ।
क्या सड़कों चौराहों को शमशान लिख दूँ ।
हम कहते हैं, हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई ,
अगर पक्का है तो पंडित को ख़ान लिख दूँ ।
राम, रहीम, गुरू, यीशु, सब एक ही तो हैं ,
तो फ़िर मस्जिद के ऊपर भगवान लिख दूँ ।
सब चिल्लाते हैं, “सारे मज़हब एक समान”,
तो फ़िर क्या सबके तख़ल्लुस, इंसान लिख दूँ ।
पूछ लो भाईयों, अपने-अपने भाईयों से ,
क्या इस वतन का नाम हिन्दुस्तान लिख दूँ ।
वो लाल किले वाला वाक़या न दोहराओ,
तो फ़िर, क्या तिरंगे पर “अपना मान” लिख दूँ ।
संजीव सिंह ✍©️
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)