*लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना (गीत)*
लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना (गीत)
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लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना
1)
मुख पर एक मुखौटा धारण, करना ही पड़ता है
सच पूछो तो शूल हृदय में, दुनिया का गड़ता है
मैंने जिसको पाया जैसा, कभी नहीं बतलाना
2)
संगी-साथी मिले रात-दिन, कुटिल भावना जानी
सबके मन में दिखी लालसा, भोगों भरी जवानी
जीवन जीना है यदि मुझको, सबके संग निभाना
3)
मन की बड़बड़ है या समझो, यह गुबार निकला है
पता नहीं किससे जन्मों का, यह हिसाब पिछला है
पढ़कर इसको सौ तालों में, करके बंद छुपाना
लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615451