लिखा भाग्य में रहा है होकर,
लिखा भाग्य में रहा है होकर,
बढ़ा न तिल भर घटा न राई।।
भला हुआ न कभी किसी का,
किसी के संग में की जो बुराई।।
कपट कर्म से जोड़ा कुनबा,महल अटारी घोड़े हाथी।
अंत समय सब हुए पराए,नही कोई कर्मो का साथी।।
हाथ पसारे आये जग में,गयी साथ मे एक न पाई।।
भला हुआ न कभी किसी का,किसी के संग में की जो बुराई।।
व्यर्थ मोहमाया में फँसकर , कीन्ही कंचन काया माटी।
बूढ़ भये तन काँपन लागे,लीन्ही साध हाँथ में लाठी।।
‘अनिल’स्वास ने साथ तजा जब,ये तन मिट्टी में मिल जाई।।
भला हुआ न कभी किसी का,किसी के संग में की जो बुराई।।