लिखना है मुझे वह सब कुछ
लिखना है मुझे वह सब कुछ
जो मेरी पहचान का भ्रम तो देता है
किंतू वास्तवविक पहचान नही
वो दर्द, वो तन्हाई, वो बेचैनी
वो अवसाद, वो रुसवाई
वकृत की पोटली से
मेरे हिस्से में सिमटते गई
जैसे नदी के तलहटी में जमे गाद
किन्तु जैसे ही छेड़ा
सारा पानी धुंधला हो उठा
और कुछ भी स्पष्ट दिख नही पाता।
हाँ! आज की पूर्णिमा में ग्रहण जो लगा है।
पूनम कुमारी (आगाज ए दिल)