लिखते लिखते लिख गया, सहज रूप संसार l
लिखते लिखते लिख गया, सहज रूप संसार l
यूँ झलका झलका गया, सहज प्रीत का सार ll
मैं ओ तुम तैयार ना, न ही भाग्य तैयार l
यह जीवन कितना रहा, प्रीत ले बेकरार ll
न खिड़की ओ किवाड़ है, न छत न ही दीवार l
बाहर रही कहाँ कहाँ, भीतर भरी बहार ll
जो चाहा ना होत है, होत होत बेकार l
न पता, मानव, भाग्य है, चंट ओ होशियार ll
जीवन दुख ओ दर्द का, बढ़ता है आकार l
खत्म कभी ना होत है, प्यास प्रकार प्रकार ll
अरविन्द व्यास “प्यास”