लिखते रहते है
गुल तो गुलशन में रोज खिलते रहेते है
कभी नए तो कभी पुराने मिलते रहते है
तुम भी कदर् करो क्यों आखिर मेरे इन जज्वातो की
कितने तुमको गोपाल जैसे मिलते रहेते है
वडा सरल है कवियों का तन्हा रहेना भी
कही अकेले गम सुम बैठे लिखते रहते है
गुल तो गुलशन में रोज खिलते रहेते है
कभी नए तो कभी पुराने मिलते रहते है
तुम भी कदर् करो क्यों आखिर मेरे इन जज्वातो की
कितने तुमको गोपाल जैसे मिलते रहेते है
वडा सरल है कवियों का तन्हा रहेना भी
कही अकेले गम सुम बैठे लिखते रहते है