लिखती लहर लहर पे ग़ज़ल लेखनी रहे
जब जब भी दिल में दर्द की बहती नदी रहे
लिखती लहर लहर पे ग़ज़ल लेखनी रहे
होते महान हैं वही संसार में सदा
जिनके विचारों में भरी बस सादगी रहे
हमको न ज्यादा चाहिए तुझसे ऐ ज़िन्दगी
बस बजती चैन की यहाँ पर बाँसुरी रहे
दिल से तो दूर तुम कभी हमसे गए नहीं
कैसे कहें कि हम यहाँ पर अजनबी रहे
घर टूट वो बिखरता कभी ‘अर्चना’ नहीं
मजबूत डोर रिश्तों की जिसकी बँधी रहे
डॉ अर्चना गुप्ता