लाश पर आँसू बहाना है।
विधा- गजल (१६ मात्रिक)
लाश पर आँसू बहाना है।
दाव सबको आजमाना है।
है निशाने पर विपक्षी तीर,
पक्ष को दामन बचाना है।
सब हवा देने चले आए,
आग यह किसको बुझाना है।
है नया सौदा लपक लूं मैं,
आदमी हूँ भूल जाना है।
खुद कलंकित हों भले जितना,
आइना सबको दिखाना है।
फूल से पंगा नहीं लेते,
पत्थरों को सर बचाना है।
कांँच की हैं खिड़कियां सबकी,
‘सूर्य’ इक पत्थर चलाना है।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464