लाशों के लगे ढेर है
******* लाशों के लगे ढेर है ********
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जिधर देखता हूँ लाशों के लगे ढेर है,
समय का यहाँ लगता शायद यही फेर है।
जरा देखिए कितनी जोखिम भरी जान है,
तिमिर गर कभी छंटेगा तो होगी सवेर है।
वहाँ देखो घटने लग गए हैं मेले घाट पर,
राजा की चौपट नगरी में छाया अंधेर है।
कुदरत का कहर का आलम तो देखिए,
शायद अब हो इंसानों से बहुत ही देर है।
लाशों के काफिले नदियों में बह आ रहे,
हैवानियत जोरो पर इंसानों में बैर खैर है।
मनसीरत सियासत ने जो जहर बखेरा है,
लगता नही अब जहां में किसी की खैर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)