लाशें बिखरी पड़ी हैं।(यूक्रेन पर लिखी गई ग़ज़ल)
यूक्रेन के हालात पर लिखी मेरी ये गजल पेश है…
हर सम्त ही जमीं पर लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी है।
बस्तियां भी यहां पे सारी की सारी ही उजड़ी पड़ी है।।1।।
बड़ा ही खौफनाक मंजर है सारे के सारे शहर का।
जानें कैसी यहां पे खुदा की कयामत नाज़िल हुई है।।2।।
बड़ा ही खूबसूरत ये शहर था अच्छे दिल वालों का।
अब हर शू यहां पर ये कैसी दहशत सी फैली हुई है।।3।।
शहर की हर गली हर सड़क हो गयी है खूं से लाल।
दूर- दूर तक यहां पर जिन्दगी कहीं दिखती नहीं है।।4।।
हर तरफ ही पसरा यहां पे बस मौत का सन्नाटा है।
खूँन के धब्बे पड़े है जिन्दगियां जमीं पर सोई हुई है।।5।।
रोने को भी कहीं पे यहां कोई बशर दिखता नहीं है।
टूटी फूटी इमारतें है जैसे किसी बड़े तुफां से गिरी है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ