लावणी छंद………
क्षितिज हुआ है रक्तिम देखो, रवि किरणों की है लाली।
गुंजित विहगवृंद चहकार , उपवन महकी हर डाली।।
प्राची की मधुमय पुरवाई, चहुंओर डाला डेरा।
देवालय घंटी सुमधुर है, जागो हो गया सवेरा।।
गौ माता रंभा – रंभा कर, अमिय कर्ण में घोल रही।
नाचे कानन मगन मयूरा, मधुर कोकिला बोल रही।।
है प्रमुदित व उल्लसित हर मन, भोर काल की है बेला।
परसेवा का पुण्य कमा ले, जग है पापों का मेला।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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